Boddh Dharma Ka Saar बौद्ध धर्म का सार
P. Lakshmi Narsu || बुद्धवासी डाॅ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन‘इसैंस आफ बुद्धिज्म’ (बौद्ध धर्म का सार) प्रोफेसर पी. लक्ष्मी नरसू की अद्वितीय कृति है। इसकी प्रशंसा डाॅ0 भीमराव रामजी अम्बेडकर ने अपनी प्रस्तावना (1948 का प्रकाशन) में की है। इस में दो राय नहीं कि आज भी इस ग्रन्थ की तुलना में अन्य ग्रन्थ नहीं बैठ सकते। यह पुस्तक उस दौरान लिखी गई जब, इस देश की कुछ पहाडी भाग को छोड़कर, बुद्ध व उसके संदेश का प्रायः लोप हो गया था। बुद्ध का अमर संदेश केवल ‘इन्टलैक्चुअल’ स्तर पर रह गया था, जनस्तर पर नहीं। डाॅ0 अम्बेडकर के धर्मान्तर से पहले, इस देश में ऐसी विभूतियां पैदा होती रही है, जिन्होने कम से कम, इस मानवीय व वैज्ञानिक वादी धम्म को मानसिक स्तर पर कायम रखा। इन विभूतियों में डाॅ0 ए.एल. नायर (बम्बई) तथा प्रो. पी. लक्ष्मी नरसू के नाम उल्लेखनीय है। बौद्ध भिक्षुओं में यदि हम गिनती करे तो प्रमुखतः अनागारिक धम्मपाल, महापंडित राहुल सांकृत्यायत, भिक्षु जगदीश काश्यप, धम्मानंद कौसंबी व डाॅ0 भदन्त आनंद कौसल्यायन के नाम विशेष उल्लेखनीय है। वैसे अनेक अन्य भिक्षुगण भी है, जिनका कार्य धम्म प्रसार में कुछ कम नहीं जैसे भिक्षु ग. प्रज्ञानंद (लखनऊ), महास्थविर चन्द्रमणि जिन्होनें बाबा साहब को धम्मदीक्षा दी थी।